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मंगलवार, 17 नवंबर 2015

कुंडली के बारह भावों की विवेचना


 
कुंडली के बारह भावों की विवेचना कर आप जान सकते हैं कि प्रत्येक भाव किसी न किसी रिश्ते का
प्रतिनिधित्व करता है तथा प्रत्येक ग्रह इंसानी रिश्तों से संबंध रखता है और यदि कुंडली में कोई
विशेष ग्रह कमजोर हो तो उस ग्रह से संबंधित रिश्तों को मजबूत करके भी ग्रह को दुरुस्त किया जा सकता
है। आइए देखें कैसे -
1. सूर्य : यह पिता का प्रतिनिधि है। यह राज्य का भी प्रतिनिधि है। सूर्य की स्थिति मजबूत करने के
लिए पिता, ताऊ से रिश्ते मजबूत रखना चाहिए।
2. चंद्र : यह माँ का प्रतिनिधि है। माँ से रिश्ते मजबूत होने पर चंद्रमा स्वयं मजबूत होता है और जीवन
में संघर्ष कम हो जाता है।
3. मंगल : यह भाई-बहनों का प्रतीक है। यह ऊर्जा व आत्मविश्वास का ग्रह है। अत: इसका प्रबल होना
जरूरी है। अत: भाई-बहनों से संबंध दुरुस्त रखें।
4. बुध : यह मामा, मौसी, नानी (ननिहाल) का प्रतिनिधि है। बुध अभिव्यक्ति का कारम है। अत:
जिन लोगों को ननिहाल का स्नेह मिलता है, उनका बुध मजबूत होता है।
5. गुरु : यह शिक्षक, गुरु का प्रतिनिधि है। गुरु ज्ञान का कारक है अत: शिक्षक का स्नेह जीवन की दिशा
बदल सकता है। यह गुरु स्त्री की कुंडली में पति का भी कारक होता है।
6. शुक्र : शुक्र से स्त्री का विचार किया जाता है। कला में वृद्धि के लिए शुक्र की प्रबलता जरूरी है। अत:
स्त्री का मान-सम्मान करने से शुक्र मजबूत होता है।
7. शनि : यह सेवकों-नौकरों का प्रतिनधि है। शनि का प्रबल होना जीवन में सफलता दिलाता है। अत:
नौकरों अधीनस्थों से योग्य व्यवहार रखना चाहिए।
8. राहु-केतु : राहु से दादा व केतु से नाना का विचार किया जाता है।
विशेष : यदि बचपन से ही रिश्तों में स्नेह सौहार्द्र बनाकर रखा जाए तो ग्रह स्वयं ही मजबूती पाने लगते
हैं।

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