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सूर्य

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गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

ग्रहों के युति

सूर्य चन्द्रमा मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु यह सभी आपस मे सम्बन्ध रखते है इन सम्बन्धो को बनाने वाला भी त्रिक सिद्धान्त ही काम करता है। यह सिद्धान्त भी कर्म के सत रज और तम सिद्धान्त पर ही काम करता है। यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे की कहावत के अनुसार जो भी ब्रह्माण्ड मे घटित हो रहा है वह ही शरीर के अन्दर भी घटित हो रहा है लेकिन वही रश्मिया अपना काम कर रही ह जो जन्म के समय मे कार्य करती थी,रसायन शास्त्र के नियम के अनुसार जितना पानी मे नमक मिलाते जाओगे उतना वह नमकीन होता जायेगा लेकिन एक सीमा पर जाकर पानी नमक को घोलना बन्द कर देगा। उसी प्रकार से हर ग्रह अपनी अपनी सीमा के अनुसार जितनी रश्मिया शरीर के अन्दर कार्य करने के लिये अपना बल् दे रही उतना ही असर कर पायेगा यह नही है कि रश्मिया कम है और ग्रह अपना अधिक बल दे दे,जब ग्रह अपना बल देने के लिये आगे आयेगा तो उस बल को रोकने के लिये भी कई कारक जो ग्रहों के रूप मे है सामने आने लगेंगे अगर ग्रह अच्छा रूप दे रहा है और कार्य को गति प्रदान करने के लिये अपनी शक्ति को दे रहा है तो खराब ग्रहो का कार्य उस गति को कम करने के लिये अपनी अपनी शक्ति का प्रयोग करने लगेंगे,उसी प्रकार से जब ग्रह अपनी बुरी गति को प्रदान करने के लिये अपना असर शुरु करेग उस समय भी जो भी कुंडली मे अच्छे ग्रह है (Good stars in favor) अपना काम शुरु कर देंगे,इस प्रकार से ग्रह के द्वारा दी जाने वाली दिक्कत कम हो जायेगी। विरले समय मे ही ऐसा होता है कि कोई ग्रह किसी ग्रह को सहारा नही दे सके और जो घटना घटित होनी है वह पूरी शक्ति से घटित हो जाये। आइये देखते है कि कौन सा ग्रह किस ग्रह से क्या सम्बन्ध रखता है।

सूर्य का अन्य ग्रहो से सम्बन्ध

सूर्य जगत का राजा है अपने समय पर उदय होता है और अपने समय पर ही अस्त हो जाता है। जातक के लिये बलशाली होने पर उसे राज्य का बल देता है लोगो को हुकुम पर चलाने की औकात रखता है। शरीर मे हड्डियों का निर्माण करता है और बलशाली बनाता है शरीर के अन्दर एक अद्भुत चमक को देता है साथ ही एक प्रकार की अहम की मात्रा को देता है जिस मात्रा से जो भी काम हाथ मे लिया जाता है उसे पूरा किया जाता है। चन्द्रमा के साथ सम्बन्ध होने पर देखने के बाद सोचने के लिये शक्ति देता है मंगल के साथ मिलने पर शौर्य और पराक्रम की वृद्धि करता है,बुध के साथ मिलकर अपने शौर्य और गाथा को दूरस्थ प्रसारित करता है अपनी वाणी और चरित्र को तेजपूर्ण रूप मे प्रस्तुत करता है,शाही आदेश को प्रसारित करता है,गुरु के साथ मिलकर सभी धर्म और न्याय तथा लोगो के आपसी सम्बन्धो को बनाता है,लोगो के अन्दर धन और वैभव की कमी को पूरा करता है,शुक्र के साथ मिलकर राजशी ठाठ बाट और शान शौकत को दिखाता है भव्य कलाकारी से युक्त राजमहल और लोगो के लिये वैभव को इकट्ठा करता है शनि के साथ मिलकर गरीबो और कामगर लोगो के लिये राहत का काम देता है जिनके पास काम नही है जो भटकते हुये लोग है उन्हे आश्रय देता है पिता के रूप मे पुत्र को सहारा देता है राहु के साथ मिलकर चक्रवर्ती बनने के कारण पैदा करता है और केतु के साथ मिलकर अपनी आस्था विश्वास और न्याय को प्रसारित करने के लिये साधनो को नियुक्त करता है जो कार्य खुद नही कर सकता है वह केतु के द्वारा अपनी आज्ञा से करवाता है.यह सब तभी होता है जब सभी ग्रह अपनी अपनी शक्ति से सूर्य को अच्छा बल दे रहे होते है लेकिन कुंडली मे अगर सूर्य खराब भाव मे है तो वह खराब रूप ही प्रस्तुत करेगा,सूर्य के बारे मे पूरी जानकारी नही दी जा रही है उसका कारण है कि लोग मेरे द्वारा लिखे गये लेखो को अपने नाम से प्रकाशित करते है और लोगो को गुमराह करते है सूर्य के बारे मे आप जानकारी नि:शुल्क प्राप्त कर सकते है ईमेल है

Moon चन्द्रमा का अन्य ग्रहो से सम्बन्ध

जितने भी कार्य सोचने के है वह चन्द्रमा के द्वारा ही होते है अगर चन्द्रमा का रूप सही है तो जीवन मे सोचने की क्रिया सही होगी अगर चन्द्रमा का स्थान गंदा है तो सोचने का काम भी गंदा ही होगा और जैसे जैसे चन्द्रमा गोचर से अन्य ग्रहों के साथ जायेगा या भाव के अनुसार अपनी गोचर से क्रिया को पूर्ण करेगा उन भावो के बारे मे भी अपनी सोच को गंदा करता जायेगा। राहु के साथ चन्द्रमा के आते ही कई प्रकार के भ्रम आजाते है और उन भ्रमो से बाहर निकलना ही नही हो पाता है उसी प्रकार से केतु के साथ आते ही मोक्ष का रास्ता खुल जाता है,और जो भी भावना है वह खाली ही दिखाई देती है मन एक साथ नकारात्मक हो जाता है
सूर्य के साथ जाते ही चन्द्रमा के अन्दर सूखापन आजाता है और जैसे रेगिस्तान मे धूप के अन्दर मारीचिका दिखाई देती है वैसी ही चन्द्रमा की सोच हो जाती है,मंगल के साथ जाते ही गर्म भाप का रूप चन्द्रमा ले लेता है और मानसिक सोच या जो भी गति होती है वह गर्म स्वभाव की हो जाती है बुध के साथ चन्द्रमा की युति अक्समात मजाकिया हो जाती है और कभी कभी मजाक मे जाललेवा भी हो जाती है गुरु के साथ चन्द्रमा अपने मे यही सोचता रहता है कि उससे अधिक कोई जानकार नही है साथ ही बार बार रिस्ते बनाने और बिगाडने मे चन्द्रमा के साथ गुरु का ही हाथ होता है मानसिक रूप से कभी तो वह जिन्दा करने की बात करने लगता है और कभी कभी बिलकुल ही समाप्त करने की बात करने लगता है। चन्द्रमा के बारे मे पूरी जानकारी नही दी जा रही है उसका कारण है कि लोग मेरे द्वारा लिखे गये लेखो को अपने नाम से प्रकाशित करते है और लोगो को गुमराह करते है सूर्य के बारे मे आप जानकारी नि:शुल्क प्राप्त कर सकते है

मंगल का अन्य ग्रहो से सम्बन्ध

इस ब्रह्माण्ड मे जितने भी द्रश्य और अद्रश्य कारक है सभी मे मंगल की गर्मी स्थित है,जो वस्तु गर्मी को नही रख सकता है वह मंगल की श्रेणी से बाहर हो जाता है,एक पत्थर के अन्दर भी गर्मी है धरती के अन्दर तो इतनी गर्मी है कि जमीन के जितने नीचे जाते जाओगे गर्मी की मात्रा बढती जायेगी और ऐसी स्थिति भी आजयेगी जहां मिट्टी लावा के रूप मे पिघल कर बह रही होगी। जिसके अन्दर जितनी गर्मी होती है उतना ही वह शक्तिशाली माना जाता है। लेकिन इतनी अधिक गर्मी भी नही होनी चाहिये कि वह आग का गोला बनकर जलाने लगे और खुद जल जाये। सूर्य के साथ मिलकर मंगल खुद को उत्तेजित कर लेता है और जितना अहम बढता जायेगा उतना वह अच्छा भी काम कर सकता है और खतरनाक भी काम कर सकता है अगर मंगल फ़्री हो जाता है तो तानाशाही का कायम होना निश्चित है,मंगल के साथ चन्द्रमा मिलता है तो वह अपनी सोच को क्रूर रूप से पैदा कर लेता है उसकी सोच मे केवल गर्म पानी जैसी बौछार ही निकलती है बुध के साथ मिलकर फ़ूल को कुम्हलाने की हिम्मत रखता है बात को इतने खरे लहजे मे कहता है कि जो नाजुक लोग होते है वह बात करने मे भी डरने लगते है। लेकिन इस युति एक बार अच्छी मानी जाती है कि व्यक्ति के अन्दर बात करने की तकनीक आजाती है वह कम्पयूटर जैसे सोफ़्टवेयर की तकनीक को बना सकता है मंग्ल के साथ गुरु के मिलने से जानकारी के अलावा भी प्रस्तुत करने की कला आजाती है और यह जीवन के लिये कष्टदायी भी हो जाती है। जितनी जानकारी होती है उससे अधिक करने से भी एक प्रकार से नई समस्या पैदा हो जाती है और उसे सम्भालना नही हो पाता है। मंगल के साथ शुक्र के मिलने से कलात्मक कारणो मे तो तकनीक का विकास होने लगता है लेकिन शरीर के अन्दर यह युति अधिक कामुकता को पैदा कर देती है और शरीर के विनास के लिये दिक्कत का कारण बन जाता है शुगर जैसी बीमारिया लग जाती है,शनि के साथ मिलने से यह गर्म मिट्टी जैसे काम करवाने की युति देता है तकनीकी कामो मे सुरक्षा के कामो मे मन लगाता है,कत्थई रंग के कारण बनाने मे यानी सूखे हुये रक्त जैसे कारण पैदा करना इसकी शिफ़्त बन जाती है। राहु के साथ मंगल की युति होने से या तो बिजली तेल पेट्रोल आदि के कामो मे बरक्कत होने लगती है या राजपूती शान से खुद को शहीद करने मे भी वक्त नही लगता है,केतु के साथ मिलने से शरीर को पतला बनाने और केवल तकनीकी रूप से दूसरो के लिये काम करने के अलावा और कोई कारण नही बन पाता है,मंगलके बारे मे आप जानकारी नि:शुल्क प्राप्त कर सकते है 

बुध के साथ अन्य ग्रहो का सम्बन्ध

बुध एक नाजुक ग्रह है यह मैने पहले ही बता दिया है इस ग्रह का रूप गोल होता है और भाषाई ग्यान के लिये यह अच्छा माना जाता है लेकिन बुध की एक आदत यह भी होती है कि व्यक्ति को खुद के ऊपर विश्वास नही होता है केवल बातो के अलावा और कोई भान नही होता है खुद को नचाने गाने भावो को प्रस्तुत करने की कला ही आती है अंग्रेजी आदि भाषाओ के जानकार लोगो को आप देख सकते है वह अपने बोलने के समय मे जो हाव भाव प्रस्तुत करते है वह बुध का ही एक रूप समझ मे आता है यानी बोलने के समय मे एक्टिंग करना,बुध के साथ सूर्य के मिलने से व्यक्ति की सोच राजदरबार मे राजदूत जैसी होती है वह कमजोर होने पर चपरासी जैसे काम करता है और वह अगर केतु के साथ सम्बन्ध रखता है तो रिसेपसन पर काम कर सकता है टेलीफ़ोन की आपरेटरी कर सकता है या ब्रोकर के पास बैठ कर केवल कहे हुये काम को कर सकता है इसकी युति के कारक ही काल सेंटर आदि माने जाते है,बुध के साथ चन्द्रमा के होने से लोगो का बागवानी की तरफ़ अधिक मन लगता है कलात्मक कारणो मे अपनी प्रकृति को मिक्स करने का काम होता है मंगल के साथ मिलकर जब भी कोई काम होता है तो तकनीकी रूप से होता है प्लास्टिक के अन्दर बिजली का काम बुध के अन्दर मंगल की उपस्थिति से ही है डाक्टरी औजारो मे जहां भी प्लास्टिक रबड का प्रयोग होता है वह बुध और मंगल की युति से माना जाता है बुध के साथ गुरु का योग होने से लोग पाठ पूजा व्याख्यान भाषण आदि देने की कला मे प्रवीण हो जाते है लोगो को बोलने और मीडिया आदि की बाते करना अच्छा लगता है,बुध के साथ शुक्र के मिलने से यह अपने को कलात्मक रूप मे आने के साथ साथ सजावटी रूप मे भी सामने करता है बाग बगीचे की सजावट मे और फ़ूलो आदि के गहने आदि बनाने प्लास्टिक के सजीले आइटम बनाने के लिये भी इसी प्रकार की युति काम करती है बुध के साथ शनि के मिलने से भी जातक के काम जमीनी होते है या तो वह जमीन को नापने जोखने का काम करने लगता है या भूमि आदि को नाप कर प्लाट आदि बनाकर बेचने का काम करता है इसके साथ ही बोलने चालने मे एक प्रकार की संजीदगी को देखा जा सक्ता है,इस प्रकार के जातक की दोस्ती पुराने और बुजुर्ग लोगो से अधिक होती है,एक प्रकार संतान के मामले मे यह लोग असमर्थ ही होते है। बुध के साथ राहु की युति होने से भी जातक के अन्दर अनाप सनाप बोलने के लिये झूठ का अधिक सहारा लेने के लिये जो जानकारी है उससे भी अधिक बखान करने के लिये देखा जाता है,बुध के साथ केतु की युति होने से जातक के लिये कोई न कोई कारण या तो दत्तक पुत्र जैसा बनता है या किसी प्रकार से दत्तक सन्तान जैसा व्यवहार जातक के साथ होता है.बुध के बारे मे आप जानकारी नि:शुल्क प्राप्त कर सकते है 

गुरु के साथ अन्य ग्रहों का सम्बन्ध
Jupiter यानी गुरु का रूप जीव के रूप मे जाना जाता है गुरु केवल वायु रूप है और वह सांस के अन्दर अपना निवास करता है,जल थल या नभ सभी स्थानो के जीवो मे गुरु अपनी ही मान्यता रखता है जब तक गुरु की सीमा है जीव का आस्तित्व है जैसे ही गुरु की सीमा समाप्त हो जाती है जीव का आस्तित्व समाप्त हो जाता है। गुरु के साथ सूर्य के मिलने से जीव और आत्मा का संगम हो जाता है गुरु जीव है सूर्य आत्मा है जिस जातक की कुंडली मे जिस भाव मे यह दोनो स्थापित होते है वह भाव जीवात्मा के रूप मे माना जाता है। गुरु का साथ चन्द्रमा के साथ होने से जातक मे माता के भाव जाग्रत रहते है,जातक के माता पिता का साथ रहता है जातक अपने ग्यान को जनता मे बांटना चाहता है। गुरु के साथ मंगल के मिलने कानून मे पुलिस का साथ हो जाता है धर्म मे पूजा पाठ और इसी प्रकार की क्रियाये शामिल हो जाती है,विदेश वास मे भोजन और इसी प्रकार के कारण जुड जाते है,गुरु के साथ बुध होने से जातक के अन्दर वाचालता आजाती है वह धर्म और न्याय के पद पर आसीन हो जाता है उसके अन्दर भावानुसार कानूनी ग्यान भी हो जाता है। शुक्र के साथ मिलकर गुरु की औकात आध्यात्मिकता से भौतिकता की ओर होना माना जाता है वह कानून तो जानता है लेकिन कानून को भौतिकता मे देखना चाहता है वह धर्म को तो मानता है लेकिन भौतिक रूप मे सजावट आदि के द्वारा अपने इष्ट को देखना चाहता है गुरु के साथ शनि के मिलने से जातक के अन्दर एक प्रकार से ठंडी वायु का संचरण शुरु हो जाता है जातक धर्मी हो जाता है कार्य करता है लेकिन कार्य फ़ल के लिये अपनी तरफ़ से जिज्ञासा को जाहिर नही कर पाता है जिसे जो भी कुछ दे देता है वापस नही ले पाता है कारण उसे दुख और दर्द की अधिक मीमांसा करने की आदत होती है। गुरु राहु का साथ होने से जातक धर्म और इसी प्रकार के कारणो मे न्याय आदि के लिये अपनी शेखी बघारने के अलावा और उसे कुछ नही आता है कानून तो जानता है लेकिन कानून के अन्दर झूठ और फ़रेब का सहारा लेने की उसकी आदत होती है वह धर्म को मानता है लेकिन अन्दर से पाखंड बिखेरने का काम भी उसका होता है। केतु के साथ मिलकर वह धर्माधिकारी के रूप मे काम करता है कानून को जानने के बाद वह कानूनी अधिकारी बन जाता है अन्य ग्रह की युति मे जैसे मंगल अगर युति दे रहा है तो जातक कानून के साथ मे दंड देने का अधिकारी भी बन जाता है गुरु के बारे में आप जानकारी नि:शुल्क प्राप्त कर सकते है 

शुक्र के साथ अन्य ग्रहों का सम्बन्ध

शुक्र भौतिकता का रूप है धन सम्पत्ति और भवन मकान की भव्यता को प्रदर्शित करता है सजावट करना इसका काम है और जिसे भी यह अपने बल को देता है उस पर आजीवन लक्ष्मी बरसती है साथ ही पुरुष है तो भली स्त्री उसे मिल जाती है और स्त्री है तो उसे सजावटी सामान का मिलना पाया जाता है सूर्य के साथ मिलकर भौतिक सुखो का राज्य सेवा मे या पिता की तरफ़ से या पुत्र की तरफ़ से देने वाला होता है चन्द्रमा के साथ मिलकर भावना से भरा हुआ एक प्रकार का बहकता हुआ जीव बन जाता है जिसे भावना को व्यकत करने के लिये एक अनौखी अदा का मिलना माना जाता है मंगल के साथ मिलकर एक झगडालू औरत के रूप मे सामने आता है बुध के साथ मिलकर अपनी ही कानूनी कार्यवाही करने का मालिक बन जाता है गुरु के साथ मिलकर एक आध्यात्मिक व्यक्ति को भौतिकता की ओर ले जाने वाला बनता है शनि के साथ मिलने पर यह दुनिया की सभी वस्तुओ को देता है लेकिन मन के अन्दर शान्ति नही देता है,राहु के साथ मिलकर प्रेम का पुजारी बन जाता है केतु के साथ मिलकर भौतिक सुखो से दूरिया देता है। शुक्र के बारे में आप जानकारी नि:शुल्क प्राप्त कर सकते है

शनि के साथ ग्रहों का आपसी सम्बन्ध

शनि कर्म का कारक ग्रह है शनि जितनी कठिनाई देता है व्यक्ति के अन्दर उतनी ही ताकत बढती है अगर व्यक्ति शनि के कारण पैदा दुखो को झेलने मे असमर्थ रहता है तो शनि की छाया कभी भी जातक के लिये दुख दायी हो जाती है। शनि सूर्य की युति मे जातक का पिता और पुत्र से आपसी विचार नही मिल पाते है शनि अपने क्षेत्र का राजा है और सूर्य अपने क्षेत्र का राजा है लेकिन सूर्य और शनि के आपसी मिलन का एक ही समय होता है वह सुबह का होता है या शाम का इसलिये अक्सर सूर्य शनि की युति वाले जातक के पास काम केवल सुबह शाम के ही होते है,वह पूरे दिन या पूरी रात कान नही कर सकता है इसलिये इस प्रकार के व्यक्ति के पास साधनो की कमी धन की कमी आदि मुख्य रूप से मानी जाती है,शनि चन्द्र की युति मे मन का भटकाव रुक जाता है मन रूपी चन्द्रमा जो पानी जैसा है शनि की ठंडक और अन्धेरी शक्ति से फ़्रीज होकर रह जाता है शनि चन्द्र की युति वाला जातक कभी भी अपने अनुसार काम नही कर पाता है उसे हमेशा दूसरो का ही सहारा लेना पडता है। शनि मंगल की युति मे काम या तो खूनी हो जाते है या मिट्टी को पकाने जैसे माने जाते है शनि अगर लोहा है तो मंगल उसे गर्म करने वाले काम माने जाते है। इसी प्रकार से शनि के साथ बुध के मिलने से जमीन की नाप तौल या जमीन के अन्दर पैदा होने वाली फ़सले या वनस्पतियों के कार्य का रूप मान लिया जाता है,शनु गुरु की युति मे एक नीच जाति का व्यक्ति भी अपनी ध्यान समाधि की अवस्था योगी का रूप धारण कर लेता है शनि शुक्र की युति मे काला आदमी भी एक खूबसूरत औरत का पति बन जाता है एक मजदूर भी एक शहंशाही औकात का आदमी बन जाता है,शनि राहु की युति मे जो भी काम होते है वह दो नम्बर के कामो के रूप मे जाने जाते है अगर शनि राहु की युति त्रिक भाव मे है तो जातक को जेल जाने से कारण जरूर पैदा होते है। शनि केतु की युति मे जातक व्यापार और दुकान आदि के फ़ैलाने के काम करता है वह एक वकील की हैसियत से अपने कामो करता है और फ़ाइल दर फ़ाइल बनाकर केश लिस्ट को तैयार कर लेता है अगर जातक के पास जमीनी काम है तो जातक के लडकियों के रिस्तेदार आकर उस काम को सम्भालने का काम करते है। शनि के बारे में आप जानकारी नि:शुल्क प्राप्त कर सकते है 

राहु के अन्य ग्रहो के साथ सम्बन्ध

Astrology ज्योतिष मे राहु को छाया ग्रह का रूप माना गया है यह बिजली की शक्ति है तो पेट्रोल की ताकत है मन की कलपना का साकार रूप है तो छाते की छाया है किसी भी मकान की छत राहु के रूप मे है यात्रा का रूप भी राहु और गणित की मशीन कम्पयूटर भी राहु के रूप मे है राहु की दूरी नही नापी जा सकती है वह अनन्त है आसमान की ऊंचाई को नही नापा जा सकता है समुद्र की गहरायी को भी नही नापा जा सकता है मन की शक्ति को भी नही नापा जा सकता है और मन की चाल की गणना करना भी दुष्कर काम है। राहु का कोई समय नही है वैसे शास्त्रो मे कहा जाता है कि राहु का समय शाम को है लेकिन मेरे ख्याल से आसमान मे बादल छा जाने के बाद जो शीतलता मिलती है वह राहु की छाया से ही मिलती है,राहु को पहिचानने वाले दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करते चले जाते है यह जिस पर भी मेहरबान हो जाये वह रोड से उठ कर महल मे निवास करने लगता है। राहु के साथ सूर्य आने पर वह आंखो की रोशनी मे मन्दता देता है पिता और पुत्र के बारे मे कोई राय नही दी जा सकती है कि इनका विस्तार कितना होगा कितना नही,सरकार के क्षेत्र मे राहु का होना एक प्रकार से अपने काम को ही मानयता देना होता है राहु हमेशा केतु को छुपाकर रखना चाहता है यह बात साकार रूप से देखी जा सकती है मुस्लिम जाति को राहु से जोड कर देखा जाता है और केतु को क्रिश्चियन की श्रेणी मे लाया जाता है मुस्लिम कभी भी ईशाई समुदाय को खुला नही देख सकता है और न ही किसी प्रकार की ईसाई सभ्यता को अपने समाज मे लाने की अनुमति देता है। राहु दाढी है और राहु ही लम्बे बाल का कारक है राहु के द्वारा ही किसी भी देवता की साकार रूप मे पूजा नही की जाती है आसमान की तरफ़ अपने देवता को पुकारने की कला को राहु ही देता है। यह जिस ग्रह के साथ होता है उसके अन्दर विस्तार करना इसका काम होता है राहु के बारे में आप जानकारी नि:शुल्क प्राप्त कर सकते है

केतु के साथ अन्य ग्रहो के सम्बन्ध

वास्तविक रूप से देखा जाये तो राहु देता है तब केतु लेता है,बिना राहु के केतु की कोई बिसात नही है,लेकिन जब राहु मारने का काम करता है तो केतु बचाने का काम करता है और जब राहु बचाने का काम करता है तो केतु मारने का काम करता है। केतु का रूप काली के रूप मे भी माना जाता है जो डाक्टर बनकर बचाने का काम करती है वह सडे अंग को काटती तो है लेकिन फ़ायदा के लिये वह किसी को मौत देती है तो फ़ायदा के लिये किसी को जीवन देती है तो किसी न किसी प्रकार से समाज जनता के हित के लिये। सूर्य केतु राजनेता होता है चन्द्र केतु जनता का आदमी होता है मंगल केतु इंजीनियर होता है तो बुध केतु कमन्यूकेशन का काम करने वाला होता है लेकिन खून से सम्बन्ध नही रखता है,इसी लिये कभी कभी दत्तक पुत्र की हैसियत से भी देखा जाता है गुरु केतु को सिद्ध महात्मा भी कहते है और डंडी धारी साधु की उपाधि भी दी जाती है शुक्र केतु को वाहन चालक जैसी उपाधि दी जाती है या वाहन के अन्दर पैसा लेने वाले कंडक्टर की होती है वह कमाना तो खूब जानता है लेकिन उसे गिना चुना ही मिलता है शनि केतु को धागे का काम करने वाले दर्जी की उपाधि दी जाती है या एक कम्पनी की कई शाखायें खोलने वाले चेयरमेन की उपाधि भी दी जाती है अक्सर यह मामला ठेकेदारी मे भी देखा जाता है।

मंगलवार, 17 नवंबर 2015

कुंडली के बारह भावों की विवेचना


 
कुंडली के बारह भावों की विवेचना कर आप जान सकते हैं कि प्रत्येक भाव किसी न किसी रिश्ते का
प्रतिनिधित्व करता है तथा प्रत्येक ग्रह इंसानी रिश्तों से संबंध रखता है और यदि कुंडली में कोई
विशेष ग्रह कमजोर हो तो उस ग्रह से संबंधित रिश्तों को मजबूत करके भी ग्रह को दुरुस्त किया जा सकता
है। आइए देखें कैसे -
1. सूर्य : यह पिता का प्रतिनिधि है। यह राज्य का भी प्रतिनिधि है। सूर्य की स्थिति मजबूत करने के
लिए पिता, ताऊ से रिश्ते मजबूत रखना चाहिए।
2. चंद्र : यह माँ का प्रतिनिधि है। माँ से रिश्ते मजबूत होने पर चंद्रमा स्वयं मजबूत होता है और जीवन
में संघर्ष कम हो जाता है।
3. मंगल : यह भाई-बहनों का प्रतीक है। यह ऊर्जा व आत्मविश्वास का ग्रह है। अत: इसका प्रबल होना
जरूरी है। अत: भाई-बहनों से संबंध दुरुस्त रखें।
4. बुध : यह मामा, मौसी, नानी (ननिहाल) का प्रतिनिधि है। बुध अभिव्यक्ति का कारम है। अत:
जिन लोगों को ननिहाल का स्नेह मिलता है, उनका बुध मजबूत होता है।
5. गुरु : यह शिक्षक, गुरु का प्रतिनिधि है। गुरु ज्ञान का कारक है अत: शिक्षक का स्नेह जीवन की दिशा
बदल सकता है। यह गुरु स्त्री की कुंडली में पति का भी कारक होता है।
6. शुक्र : शुक्र से स्त्री का विचार किया जाता है। कला में वृद्धि के लिए शुक्र की प्रबलता जरूरी है। अत:
स्त्री का मान-सम्मान करने से शुक्र मजबूत होता है।
7. शनि : यह सेवकों-नौकरों का प्रतिनधि है। शनि का प्रबल होना जीवन में सफलता दिलाता है। अत:
नौकरों अधीनस्थों से योग्य व्यवहार रखना चाहिए।
8. राहु-केतु : राहु से दादा व केतु से नाना का विचार किया जाता है।
विशेष : यदि बचपन से ही रिश्तों में स्नेह सौहार्द्र बनाकर रखा जाए तो ग्रह स्वयं ही मजबूती पाने लगते
हैं।